मृगनाभ्यादि वटी जडी-बूटियाँ :: Mrignabyadi equit

मृगनाभ्यादि वटी::
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शीतकाल में शरीर को पोषण और शक्ति प्रदान करने के लिए सेवन योग्य एक उत्तम वाजीकारक योग है। विवाहित स्त्री-पुरुषों को इस योग का सेवन कर लाभ उठाना चाहिए।

सामग्री -- कस्तूरी 1 ग्राम, केसर 2 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 5 ग्राम, जायफल 6 ग्राम, बंसलोचन 7 ग्राम, जावित्री 8 ग्राम, सोने के वर्क 1 ग्राम और चाँदी के वर्क 3 ग्राम, मुक्ता पिष्टी 4 ग्राम
निर्माण विधि- कस्तूरी, केसर, सोने, चाँदी के वर्क और मुक्ता पिष्टी अलग रखकर शेष सब द्रव्यों को खूब कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और कस्तूरी-केसर आदि द्रव्यों को अलग खरल में घोंटकर यह चूर्ण डालकर नागर पान का रस छिड़कते हुए घुटाई करें। छाया में सुखाकर शीशी में भर लें।
मात्रा और सेवन विधि- एक या दो गोली सुबह-शाम एक गिलास मीठे दूध या थोड़ी मलाई के साथ लेवे |


उपयोग-
इस योग का उपयोग सामान्य स्वस्थ व्यक्ति भी कर सकता है यौन विकारों को नष्ट करने के लिए यह योग अति उत्तम है। वीर्यस्राव (धात जाना), स्वप्नदोष, धातुक्षीणता, शीघ्रपतन, ध्वजभंग (नपुंसकता) जैसे दोष दूर कर यौनशक्ति बढ़ाने के अलावा प्रमेह, क्षय, श्वास रोग तथा मंदाग्नि दूर कर शारीरिक बल, बुद्धिबल, स्मरणशक्ति और वीर्य की वृद्धि करने वाला यह योग शरीर को निरोग रखता है और आयु की वृद्धि करता है।

मृगनाभ्यादि वटी रक्तवाहिनी और वातवाहिनी दोनों नाड़ियों पर प्रभाव कर लाभ पहुँचाती है। इस वटी में शीतवीर्य द्रव्यों की प्रधानता होने से उष्ण प्रकृति के स्त्री-पुरुष ग्रीष्म ऋतु में भी इस योग का सेवन निर्भयतापूर्वक कर सकते हैं।
सुजाक, उपदंश या पित्त प्रकोप के कारण पीले रंग का पेशाब बार-बार और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होना, आँखों में जलन, सिर में भारीपन, चक्कर आना, तन्द्रा व आलस्य बना रहना, पाचनशक्ति की कमी और चेहरे की निस्तेजता आदि दोष पूर करने में बहुत लाभप्रद है।
स्त्री वर्ग- इस वटी के सेवन से गर्भाशय और प्रजनन प्रक्रिया संस्थान को बल मिलता है, शरीर पुष्ट और सुडौल बनता है, चेहरा तेजस्वी और दमदमाता हुआ रहता है और शरीर में जल्दी थकावट नहीं आती। 
यदि स्त्री शिशु को दूध पिलाती हो तो शिशु भी इस योग के गुण लाभ से लाभान्वित होगा, इसलिए नवप्रसूता महिलाओं को 2-3 माह इस योग का प्रयोग करना चाहिए। 
प्रौढ़ आयु की तरफ बढ़ रही महिलाएँ यदि इस वटी का सेवन करें तो प्रौढ़ता के लक्षण दूर होंगे, उनका शरीर देर तक युवा बना रहेगा और चेहरा कान्तिपूर्ण बना रहेगा।


मानसिक तनाव, अवसाद या आघात से उत्पन्न मानसिक दुर्बलता, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न निर्बलता, निद्रानाश, स्मरणशक्ति की कमी, मन में कुविचार और आशंका का भाव आना, उदासीनता, अरुचि, उच्चाटन और मलावरोध होना आदि दोष दूर करने के लिए इस योग का प्रयोग करना अति उत्तम है। 
इसी नाम से बाजार में दवा की दुकानों पर मिलता है।
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